बाढ़ कैसी आई और कारण
कारण: 5 अगस्त को खीरगंगा नदी के ऊपरी जल-ग्रहण क्षेत्र में एक या दो cloudburst (बादल फटना) हुईं, जिससे अचानक भारी बारिश हुई और यह पानी तेज धाराओं में परिवर्तित होकर धाराली गांव में आया
प्रभाव: इस अचानक बाढ़ के कारण पानी और मलवाहिका पत्थर‑मिट्टी का तेज मिश्रण बन गया, जिससे घर, होटल, दुकानें, सड़के और छोटे बाजार पूरी तरह विध्वस्त हो गए
क्षति: जान-माल – विस्तृत जानकारी
मौतें
प्रारंभिक रिपोर्ट में कम से कम 4 लोगों की मौत हुई थी।
हाल की जानकारी अनुसार शवों की संख्या बढ़कर 5 तक हो चुकी है ।
गुमशुदा लोग
लगभग 100 लोगों तक को लापता माना जा रहा है, जिनमें स्थानीय लोग, मजदूर और पर्यटक शामिल हो सकते हैं ।
इसमें 8–10 भारतीय सेना के जवान भी शामिल हैं, जो हर्सिल क्षेत्र में लापता बताए जा रहे हैं ।
बचाव अभियान
अब तक लगभग 150–190 लोगों को बचाया जा चुका है (110–150 की शुरुआती रिपोर्ट के बाद संख्या बढ़कर ~190 तक पहुँच गई है) ।
भारतीय सेना, ITBP, NDRF, SDRF एवं स्थानीय प्रशासन मिलकर बचाव कार्य वॉर फुटिंग पर चला रहे हैं और सुरंगों, गहरी चोटियों और कठिन इलाके में हेलिकॉप्टर और कुत्तों का उपयोग कर रहे हैं ।
सारांश (तथ्य तिथि तक)
विषय | विवरण |
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घटना तिथि | 5 अगस्त 2025 |
मौतें | 4–5 |
गुमशुदा | लगभग 100 (जिसमें 8–10 सैनिक) |
बचाए गए लोग | लगभग 150–190 व्यक्ति |
मुख्य प्रभावित स्थान | धाराली गांव एवं हर्सिल क्षेत्र, उत्तरकाशी ज़िला |
कारण | खीरगंगा नदी क्षेत्र में बादल फटने (cloudburst), जिससे अचानक flash flood |
अन्य प्रभावित एवं पृष्ठभूमि
बनाला पत्ती, बर्कोट क्षेत्र में भी बाढ़ से 18 बकरियाँ बह गईं, indicating व्यापक प्रभाव फैल चुका था ।
मौसम विज्ञान विभाग ने आगामी दिनों (तक 10 अगस्त) के लिए भारी बारिश की चेतावनी जारी की है, जिससे नई समस्याओं की आशंका बनी हुई है ।
यह घटना 2013 और 2021 की देवभूमि में आई अन्य बड़ी आपदाओं की तरह प्राकृतिक कारणों (बादल फटना) से उत्पन्न हुई है, लेकिन विशेष रूप से 2013 में 6000+ मृतकों वाली त्रासदी से तुलना हो रही है ।
निष्कर्ष
5 अगस्त 2025 को खीरगंगा नदी के catchment क्षेत्र में बादल फटने की घटना ने धाराली गांव को तबाह कर दिया। अब तक चार-पांच लोग मारे गए, लगभग सौ लापता हैं (जिसमें सैनिक शामिल), और लगभग 150‑190 लोगों को रेस्क्यू किया जा चुका है। राहत एवं बचाव कार्य तीव्रता से जारी है।
उत्तराखंड, भारत का एक पहाड़ी राज्य, प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के लिए भी जाना जाता है। इसकी भौगोलिक स्थिति, कमजोर पर्वतीय ढांचा, भारी वर्षा, ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना और मानवीय हस्तक्षेप इसे आपदाओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील बनाते हैं। यहाँ हम उत्तराखंड में आई प्रमुख आपदाओं का इतिहास 500 शब्दों में संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं।
1. 1991 उत्तरकाशी भूकंप
20 अक्टूबर 1991 को उत्तरकाशी जिले में रिक्टर पैमाने पर 6.8 तीव्रता का भूकंप आया। इसमें लगभग 768 लोग मारे गए और हजारों घर नष्ट हो गए। यह भूकंप राज्य की संवेदनशीलता का पहला बड़ा उदाहरण था।
2. 1998 मालपा भूस्खलन
14-15 अगस्त 1998 को पिथौरागढ़ जिले के मालपा गाँव में भारी बारिश के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ। इसमें कैलाश मानसरोवर यात्रा कर रहे 60 से अधिक तीर्थयात्री मलबे में दब गए। यह एक गंभीर मानवीय त्रासदी थी।
3. 2004 और 2010 की बादल फट घटनाएँ
उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ और चमोली जैसे क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाएँ तेजी से बढ़ीं। 2010 में लोहाघाट (चंपावत) और धारचूला में भारी तबाही हुई। इन घटनाओं ने दिखाया कि जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित विकास किस तरह आपदाओं को जन्म दे रहे हैं।
4. 2013 केदारनाथ आपदा (सबसे बड़ी त्रासदी)
16-17 जून 2013 को केदारनाथ में बादल फटने, अत्यधिक वर्षा और चोराबाड़ी ग्लेशियर झील फटने के कारण भयंकर बाढ़ और भूस्खलन हुए। इसमें लगभग 5,000 से अधिक लोग मारे गए या लापता हो गए। हजारों घर, पुल, सड़कें और भवन नष्ट हो गए। यह आपदा उत्तराखंड के इतिहास की सबसे भीषण और त्रासद घटनाओं में से एक मानी जाती है।
5. 2021 ऋषिगंगा ग्लेशियर आपदा
7 फरवरी 2021 को चमोली जिले के तपोवन क्षेत्र में ऋषिगंगा ग्लेशियर का एक हिस्सा टूट गया, जिससे अचानक बाढ़ आई। इस आपदा में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बह गए और लगभग 200 लोग मारे गए या लापता हुए। यह आपदा भी जलवायु परिवर्तन और अनियोजित निर्माण कार्यों की चेतावनी थी।
6. 2023 जोशीमठ धंसाव
जोशीमठ शहर में जमीन धंसने की घटनाएँ सामने आईं। यह एक धीमी गति की आपदा थी जिसमें सैकड़ों घरों में दरारें आईं और लोगों को पुनर्वासित किया गया। विशेषज्ञों ने इसे जल-निकासी की गड़बड़ी और अधिक निर्माण कार्य का परिणाम बताया।
निष्कर्ष:
उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं का इतिहास बताता है कि यह क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील है। अनियंत्रित निर्माण, वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन और पर्यटन के दबाव ने आपदा के खतरे को और बढ़ा दिया है। इसलिए, पर्यावरण के अनुकूल विकास और आपदा प्रबंधन की रणनीति बनाना अब अनिवार्य हो गया है, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके।