कुरान में धरती के आकार के बारे में विभिन्न प्रकार की व्याख्याएँ मिलती हैं, जो प्राचीन समय के भौगोलिक ज्ञान और धार्मिक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। कई लोग मानते हैं कि इस्लामिक ग्रंथों में धरती को चपटी बताने वाली आयतें हैं, जबकि अन्य इसे एक रूपक या प्रतीकात्मक भाषा में देखते हैं। इस विषय पर चर्चा करने से पहले, यह आवश्यक है कि हम कुरान के संदर्भ और उसके भौगोलिक और वैज्ञानिक गणनाओं की जांच करें।
कुरान में कई स्थानों पर धरती और आसमान का उल्लेख किया गया है। एक आयत में यह कहा गया है कि "हे अल्लाह, तुम्हारा मार्ग एक सीधा मार्ग है।" (कुरान 1:6) यह बातें तब की जाती हैं जब यह बताया जाता है कि ईश्वर ने सृष्टि को संतुलित और सीधे बनाया है। कुछ विद्वान यह तर्क करते हैं कि जब धरती के आकार की बात की जाती है, तो यह सीधे तौर पर एक चपटी धरती का संकेत नहीं है, बल्कि यह सृष्टि के संतुलन और स्थिरता की ओर इशारा करता है।
अक्सर लोगों को आपने कहते सुना होगा कि कुरान में लिखा है कि पृथ्वी चपटी है और इसी प्रश्न के हवाले से वे कुरान की एक आयत का उदाहरण देते हैं
उदाहरण::- सुरह 79 आयत 30,31 और 32 का
आयत 30- उसके बाद उसने जमीन को फैलाया ||
आयत 31- उसी में उसका पानी और चारा निकाला ||
आयत 32- और पहाड़ों को उसमें रख दिया अर्थात गाड़ दिया ||
इन तीन आयतो को जब हम पढ़ते हैं तब हमें ऐसा लगता है कि यहां धरती को चपटी कहा गया है लेकिन जब दो आयत 30 और 32 को हम देखते हैं तो इन दो आयतों को पढ़कर हमें एक घटना याद आती है जो पृथ्वी पर कई लाख साल पहले घटी थी ||
दोस्तों पृथ्वी पर होने वाली इस घटना का जिक्र कुरान के अलावा दुनिया के किसी भी धर्म ग्रंथ में नहीं मिलता ||
वैज्ञानिकों का मानना है कि आज से कई लाख साल पहले पृथ्वी पर मौजूदा सभी महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे लेकिन फिर धरती पर एक बहुत ही बड़ा भूकंप आया || जिसके फलस्वरूप सभी महाद्वीप अलग अलग हो गए जिसे आज हम दक्षिणी अमेरिका और उत्तरी अमेरिका के नाम से जानते हैं कभी यह महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे लेकिन इस घटना के बाद यह दोनों अलग हो गए अब बात यह आती है कि इन दो आयतो से यह कैसे सिद्ध होगा कि यह आयत उसी घटना पर आधारित हैं ||
हमें इस घटना में पढ़ाया गया है कि जब एक महाद्वीप दूसरे महाद्वीप से टकराया तो उसके फलस्वरूप पहाड़ों का निर्माण हुआ और जब हम कुरान की सूरह नंबर 79 और आयत नंबर 30,32 पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि उसमें साफ-साफ लिखा है कि हमने धरती को फैलाया और उसमें पहाड़ रख दिए ||
उदाहरण के तौर पर हम जानते हैं कि
हिमालय और उसकी पहाड़ी श्रंखलाओं का निर्माण भारतीय महाद्वीप के चीन महाद्वीप से टकराने के फलस्वरूप हुआ ||और कुरान की सूरह नंबर 79 और आयत नंबर 3032 को पढ़कर कुछ ऐसा ही मालूम होता है ||
दोस्तों जब हम कुरान की सूरह नंबर 79 और आयत नंबर 30 32 को अरबी में पढ़ते हैं तो उसमें एक अरबी शब्द आता है दहाहा और सारी जंग इसी शब्द को लेकर छिड़ी हुई है दरअसल दाहाहा का जो असल मीनिंग है वह स्प्रेड आउट मतलब फैलाना या फैलाया गया ||
मुस्लिम स्कॉलर का मानना है कि दहाहा शब्द मिस्री शब्द दाहियान के करीब है जिसका मतलब "Ostrich of egg" होता है || अर्थात शुतुरमुर्ग का अंडा क्योंकि शुतुरमुर्ग का अंडा का शेप बिल्कुल पृथ्वी के आकार की तरह होता है जिससे वह यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि पृथ्वी का आकार शुतुरमुर्ग के अंडे की तरह होता है लेकिन कोई शब्द किसी के करीब होने से वह शब्द नहीं हो जाता || और यही पर विरोधियों को मौका मिल जाता है कि वह कुरान पर सवाल उठा सकें || अर्थात यह कहना गलत होगा कि कुरान के अनुसार पृथ्वी गोल है बल्कि यह कहना सही है कि कुरान में पृथ्वी की आकृति का कोई जिक्र नहीं है ||
अब हम बात करते हैं कि कुरान में पृथ्वी की आकृति का कोई जिक्र क्यों नहीं किया गया तो सिंपल सी बात है जब आप पृथ्वी पर से अन्य ग्रहों जैसे कि सूर्य और चंद्रमा को देखते हैं तो वह पृथ्वी पर से आपको गोल ही दिखाई देते हैं ना कि चौकोर चौखंटा या लंबे चौड़े ||
और जाहिर सी बात है जब वह गोल दिख रहे हैं तो जिस पर हम रह रहे हैं वह भी गोल ही होगी ||
अर्थात कुरान की सूरह नंबर 79 की आयत नंबर 30 और 32 पृथ्वी पर होने वाली एक महत्वपूर्ण घटना की ओर इशारा करती हैं ना कि पृथ्वी के गोल होने की ||
विभिन्न इस्लामी विद्वान और फिलॉसफर्स ने भौगोलिक विशेषताओं और प्राकृतिक घटनाओं के अध्ययन को महत्व दिया। उदाहरण के लिए, ऐल-बरूनी जैसे विद्वान ने पृथ्वी की गोलाई की ओर इशारा किया और गणितीय गणनाओं के माध्यम से इस निर्णय पर पहुंचे। इसके विपरीत, कुछ अन्य विचारकों ने आस्थाएँ व्यक्त कीं कि कुरान की भाषाएँ प्रतीकात्मक हो सकती हैं और वैज्ञानिक तथ्य सीधे तौर पर सटीक नहीं होते।
प्राचीन समय में, जब वैज्ञानिक ज्ञान अभी विकसित हो रहा था, तब कुरान में दी गई जानकारी को अपनी दृष्टि के अनुसार समझा जाता था। असल में कई धार्मिक ग्रंथों में इस समय के अनुसार भूगोल और ब्रह्मांड संबंधी जानकारी को प्रस्तुत किया गया है। इन ग्रंथों को देखने का एक तरीका यह है कि वे अपने समय के ज्ञान और तकनीकी सीमाओं को दर्शाते हैं। कुछ शिक्षकों ने इसे ज्ञान का एक साधन माना है, जिससे यह स्पष्ट करना संभव हो सके कि प्राकृतिक घटनाएँ कैसे कार्य करती हैं।
आज, विज्ञान ने हमें धरती के बारे में विस्तृत जानकारी दी है, जिसमें यह प्रमाणित हो चुका है कि पृथ्वी एक गोलाकार आकृति में है। इसके बावजूद, इस्लामी धर्म का ध्यान मुख्य रूप से ईश्वर की सृष्टि और उसकी अनंतता, भव्यता और सामंजस्य पर है। कुरान का मुख्य उद्देश्य मानवता को मार्गदर्शन करना है, अन्यथा भौगोलिक आंकड़ों की सटीकता नहीं है।
अंत में, कुरान में धरती के आकार के बारे में विभिन्न व्याख्याएँ हैं, जिनका आधुनिक विज्ञान से अच्छा खासा भिन्नता है। हमें इस ज्ञान के साथ सहिष्णुता और समझ के साथ आगे बढ़ना चाहिए, और यह भी देखना चाहिए कि कैसे धार्मिक और वैज्ञानिक ज्ञान एक दूसरे को पूरक बना सकते हैं। यह आवश्यक है कि हम अपने ज्ञान और विश्वास के साथ संतुलन बनाते रहें, ताकि हम बेहतर समझ सकें कि हमारी सृष्टि और अस्तित्व का मूल क्या है।