कुरान में तीन तलाक क्या है? कुरान में तीन तलाक का नियम?....
मुस्लिम समाज में तीन तलाक क्या होता है?
इस्लाम में तीन तलाक के नियम को समझने से पहले हमें यह समझना जरूरी है कि हमारे संविधान में तीन तलाक का क्या नियम है? संविधान में डाइवोर्स का कानून (law of divorce in Indian Constitution)
अदालत तलाक के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल करती हैं! अनुच्छेद 142 के अनुसार तलाक की अपील तभी संभव है जब पति-पत्नी साल भर या उससे भी अधिक समय से अलग रह रहे हो! पहले दोनों ही पक्षों को कोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ती है,दूसरे चरण में दोनों पक्षों के अलग-अलग बयान लिए जाते हैं और दोनों पक्षों की दस्तखत की औपचारिकता होती है!
तीसरे चरण में कोर्ट दोनों पक्षों को 6 महीने का वक्त देती है और हर 2 महीने बाद दोनों पक्ष कोर्ट में हाजिर होकर अपने तलाक के कागज पर दस्तखत करते हैं ऐसा 6 महीने में 3 बार होता है यदि इन 6 महीने के दौरान दोनों पक्षों में सुलह हो जाती है और वे फिर से एक दूसरे के साथ हंसी-खुशी रहने के लिए राजी हो जाते हैं तो यहां तलाक रद्द कर दिया जाएगा बिना किसी जुर्माने के!
लेकिन यदि दोनों पक्षों में कोई समझौता नहीं होता है तो कोर्ट अपना फैसला सुनाती है और रिश्ते के खत्म होने पर कानूनी मुहर लग जाती है!
भारतीय संविधान के अनुसार एक बात बहुत गौर करने वाली है! कि यदि तलाक के दौरान 6 महीने के अंदर पत्नी प्रेग्नेंट पाई जाती है और यदि पत्नी आरोप लगाती है पति पर यह बच्चा उनके पति का है और कुछ जांचो के बाद जब यह कंफर्म हो जाता है की औरत का बच्चा उसके पति का है तो जब तक बच्चे के संबंध में सही फैसला नहीं आ जाता तब तक कोर्ट अपना फैसला तलाक के संबंध में नहीं सुनाती ! और पति को बच्चे के पैदा होने तक पत्नी को भरण पोषण का पैसा देना होता है!
और अब बात करते हैं कुरान में तलाक का नियम क्या है!
इस्लाम में तीन तलाक, कुछ लोग तलाक-ए-हसन भी कहते हैं!
सबसे पहले हम कुरान की सूरह बकरा की आयत नंबर 225,256 पर नजर डालते हैं!
**225:- अल्लाह तुम्हारी अनजानी सौगंध ऊपर तुम्हें नहीं पकड़ता बल्कि वहां उस संकल्प पर पकड़ता है जो तुम्हारे हृदय (दिल) करते हैं!*
*226:- जो लोग अपनी पत्नियों से ना मिलने की कसम खा ले उनके लिए 4 महीने तक का असर है, फिर यदि वह (अपनी पत्नी की ओर) लौट आए ,तो अल्लाह क्षमा करने वाला है!**
दोस्तों, आयत नंबर 225 में अल्लाह तआला हमें बता रहे हैं कि मैं तुम्हें उन कसमों पर बिल्कुल नहीं पकड़ता जो तुम किसी के कहने पर या गुस्से में खाते हो बल्कि मैं तुम्हें उन कदमों पर पकड़ता हूं, जो तुम सहमति से या धैर्य रखकर या शांत मन से प्रण करते हो अर्थात जो प्रण तुम्हारा ह्रदय करता है!
और आगे जब आप आयत नंबर 226 पर नजर डालेंगे तो आप पाएंगे कि यहां तलाक लेने की अवधि 4 महीने निर्धारित की गई है जो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-142 के कानून से काफी मिलता-जुलता है! या फिर यह कहे तलाक का जो नियम भारतीय संविधान में है वह शरीयत से लिया गया है !
दोस्तों इसी में आगे की *आयत 228* पर नजर डालते हैं
*सूरह बकरा,आयत नंबर 228*
*तलाक दी हुई औरतें अपने आपको तीन हैज तक रोके रखे! ( अर्थात 3 महीने तक ना वह कोई सिंगार करें ना किसी से निकाह करें) , और उनके लिए वैध नहीं कि वह चीज को छिपाएं जो अल्लाह ने पैदा किया है उनके पेट में! इस अवधि में उनके पति उनको फिर लोटा लेने का अधिकार रखते हैं यदि वह संबंधों को ठीक करना चाहे और उन औरतों के लिए नियमानुसार उसी तरह अधिकार है जिस प्रकार नियम के अनुसार उनपर दायित्व है!
दोस्तो, अल्लाह तआला, इस आयत के माध्यम से हमें बता रहे हैं कि यदि तुम्हारी पत्नी के पेट में तुम्हारी औलाद हो तो तुम उसे वापस निकाह में ले सकते हो और बच्चे की वजह से तुम्हारे बीच तलाक नहीं माना जाएगा जब तक बच्चे के हक में सही फैसला नहीं हो जाता!
यदि दोनों अपने संबंध सुधारना चाहे तो बहुत अच्छा है यदि ऐसा नहीं हो सकता या हो पा रहा है तो मर्द को बच्चे का हर्जाना देना होगा या खर्च उठाना होगा !(सर्त बच्चा उसी का हो)
लेकिन यदि औरत एक नहीं होना चाहती और बच्चा मर्द को वापस नहीं करना चाहती तो यह उसका अपना फैसला होगा! इस स्थिति में मर्द यदि औरत को हर्जाना देना चाहे तो बहुत अच्छा है यदि ना दे तो उस पर कोई आरोप नहीं!
दोस्तों, अल्लाह तआला, इस आयत के माध्यम से हमें बता रहे हैं कि यदि तुम्हारी पत्नी के पेट में तुम्हारी औलाद हो तो तुम उसे वापस निकाह में ले सकते हो और बच्चे की वजह से तुम्हारे बीच तलाक नहीं माना जाएगा जब तक बच्चे के हक में सही फैसला नहीं हो जाता!
यदि दोनों अपने संबंध सुधारना चाहे तो बहुत अच्छा है यदि ऐसा नहीं हो सकता या हो पा रहा है तो मर्द को बच्चे का हर्जाना देना होगा या खर्च उठाना होगा !(सर्त बच्चा उसी का हो)
लेकिन यदि औरत एक नहीं होना चाहती और बच्चा मर्द को वापस नहीं करना चाहती तो यह उसका अपना फैसला होगा! इस स्थिति में मर्द यदि औरत को हर्जाना देना चाहे तो बहुत अच्छा है यदि ना दे तो उस पर कोई आरोप नहीं!
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